अध्याय १८ – श्लोक ७०

अध्याय १८ – श्लोक ७०

 

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TheGita – Chapter 18 – Shloka 70

Shloka 70

However, dear Arjuna, these works of purification should be performed with freedom from attachment to material goods and without expectation of any rewards resulting from these actions. This, O Partha, is My decided and final word.

इसलिये हे पार्थ ! इन यज्ञ, दान और तपरूप कर्मों को तथा और भी सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को आसक्ति और फलों का त्याग करके अवश्य करना चाहिये, यह मेरा निश्चय किया हुआ उत्तम मत है ।। ६ ।।

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