उदासीनता

उदासीनता

अध्याय – 2 – श्लोक – 3

The great Lord Krishna continued:

O Arjuna, be brave, be a bold, courageous man.  Do not be a coward and a feeble person, it does not suit such a great warrior and killer of enemies as you !

इसलिये हे अर्जुन ! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझमें यह उचित नहीं जान पड़ती । हे परंतप ! ह्रदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के लिये खड़ा हो जा ।।३ ।।

अध्याय – 2 – श्लोक – 14

The Blessed Lord continued:

O son of KUNTI (Arjuna), when the senses come in contact with their sensual objects, feelings of heat, cold, pain and pleasure. These feelings last only for a short time; they will come and go. Bear them patiently dear ARJUNA.

हे कुन्तीपुत्र ! सर्दी, गर्मी और सुख-दुःख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति-विनाशशील और अनित्य हैं, इसलिये हे भारत तू उनको सहन कर ।। १४ ।।

अध्याय – 5 – श्लोक – 21

O Arjuna, a person who has totally detached himself from the material world and is happy and satisfied within his own self, attains eternal peace. When a person is truly established in the Yoga of God (service, devotion and prayers to Him), he experiences true, eternal bliss without a doubt, O Arjuna.

बाहर के विषयों में आसक्त्ति रहित अन्त:करण वाला साधक आत्मा में स्थित जो ध्यान जनित सात्त्विक आनन्द है, उसको प्राप्त होता है ; तदनन्तर वह सच्चिदानन्दधन परब्रह्म परमात्मा  के ध्यान रूप योग में अभिन्न भाव से स्थित पुरुष अक्षय आनन्द का अनुभव करता है ।। २१ ।।

उदासीनता