नियंत्रण

नियंत्रण

अध्याय – 12 – श्लोक -13-14

The Lord describes the divine qualities of a devotee:
He who hates no one, who is friendly and compassionate to all, who is free of egoism, balanced in pain and pleasure and forgiving.
He who is ever content, ever steady in meditation, self-controlled and firmly committed with mind and intellect fixed on Me, that devotee is dear to Me.

जो पुरुष सब भूतों द्बेष-भाव से रहित, स्वार्थ रहित सबका प्रेमी और हेतुरहित दयालु हैं तथा ममता से रहित, अहंकार से रहित सुख-दुःख़ों की प्राप्ति में सम और क्षमावान् हैं अर्थात् अपराध करने वाले को भी अभय देने वाला हैं ; तथा जो योगी निरन्तर संतुष्ट है मन-इन्द्रियों सहित शरीर को वश में किये हुए है और मुझ में दृढ़ निश्चय वाला हैं —- वह मुझ में अर्पण किये हुए मन-बुद्भि वाला भक्त्त मुझको प्रिय हैं ।। १३ – १४ ।।

अध्याय – 16 – श्लोक -19

These devilish people who are cruel, whose soul is filled with hate, and who are among the worst men on earth, are ultimately thrown into destruction by Me the Supporter of all that is pure and who represents goodness in this world. O Arjuna, these people constantly remain in this vast cycle of constant birth and rebirth.

मैं द्बेष करने वाले  पापाचारी और कूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बार-बार आसुरी योनियों में ही डालता हूँ ।। १९ ।।

अध्याय – 18 – श्लोक -71

He who only listen to this conversation, has faith in Me, is detached from sinful activities and has no doubt concerning Me or the divine words I utter, also attains blissful freedom from this world and in the end resides among only the pious and holy men.

जो मनुष्य श्रद्धा युक्त्त और दोष दृष्टि से रहित होकर इस गीता शास्त्र का श्रवण भी करेगा, वह भी पापों से मुक्त्त होकर उत्तम कर्म करने वालों के श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त होगा ।। ७१ ।।

नियंत्रण