O Arjuna, those people who love, trust and worship Me receive the same love, trust and worship from Me. All wise men follow Me in all respects. They follow my every path.
हे अर्जुन ! जो भक्त्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उन को उसी प्रकार भजता हूँ ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं ।। ११ ।।
अध्याय – 9 – श्लोक – 22
However, Arjuna, for those beings who worship Me with a fixed mind, meditating and constantly thinking of Me, worshipping Me without any desire for rewards in return for their worship, are granted full refuge and salvation in My Supreme Abode (Heaven). These devotees are never reborn in this cycles of birth and death and attain a place in My Abode for Eternity.
जो अनन्य प्रेमी भक्क्त जन मुझ परमेश्वर को निरन्तर चिन्तन करते हुए निष्काम भाव से भजते है, उन नित्य- निरन्तर मेरा चिन्तन करने वाले पुरुषो का योग क्षेम मै स्वयं प्राप्त कर देता हूँ ।। २२ ।।
अध्याय – 9 – श्लोक – 34
Arjuna, fix your mind only on Me; be my true, dedicated and sincere devotee; offer all sacrifices to Me; bow to Me. Having these things with Me always in mind, you will come to Me inevitably.
मुझ मे मन वाला हो, मेरा भक्त्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर । इस प्रकार आत्मा को मुझ मे नियुक्त्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा ।। ३४ ।।
अध्याय – 18 – श्लोक -66
Detach yourself from all worldly things O Arjuna, and reach out to Me for your salvation and liberation from this world. I shall always protect you from all the worldly sins you may encounter. Put your full love, trust, and devotion in me and you shall fear nothing.
सम्पूर्ण धर्मों को अर्थात् सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को मुझ में त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्व शक्त्तिमान् सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा । मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त्त कर दूंगा, तू शोक मत कर ।। ६६ ।।
अध्याय – 18 – श्लोक -78
Wherever there is the Divine Lord Krishna, the Master of all Yoga, and the able disciple Arjuna, there is beauty, morality, extraordinary power, and victory over all evil. O King Dhrtarastra, this is my unshakeable belief and faith.
हे राजन् ! जहां योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण हैं और जहाँ गाण्डीव धनुषधारी अर्जुन हैं, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है —-ऐसा मेरा मत है ।। ७८ ।।