भीती

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अध्याय – 4 – श्लोक -10

O Arjuna, if one really to seek refuge and be one with Me, he must totally free himself from passion, fear and anger, seek my protection only, and purify himself with the fire of Gyan (knowledge). If one manages to accomplish these thing, he will be able to become one with Me in mind and body.

पहले भी, जिनके राग, भय और क्रोध सर्वथा नष्ट हो गये थे और जो मुझ में अनन्य प्रेम पूर्वक स्थिर रहते थे, ऐसे मेरे आश्रित रहने वाले बहुत से भक्त्त उपर्युक्त्त ज्ञान रूप ताप से पवित्र होकर मेरे स्वरूप को प्राप्त हो चुके हैं ।। १० ।।

अध्याय – 11 – श्लोक -50

Sanjaya further recounted:
Having said this to Arjuna, the great Lord Vasudeva (Krishna) revealed to Arjuna, His human form once more. Thus the Lord of all beings gave peace to Arjuna’s fear and comforted a terrified Arjuna.

संजय बोले ——-वासुदेव भगवान् ने अर्जुन के प्रति इस प्रकार कहकर फिर वैसे ही अपने चतुर्भुज रूप को दिखलाया और फिर महात्मा श्रीकृष्ण ने सौम्य मूर्ति होकर इस भयभीत अर्जुन को धीरज दिया ।। ५० ।।

अध्याय – 18 – श्लोक -30

Pure and SAATVIC wisdom, O Partha, is that which one possesses when one knows when to go to a certain point and when to return; what should and should not be done; what fear is and what courage is; and who recognizes the difference between bondage to this world and freedom from it.

हे पार्थ ! जो बुद्भि प्रवृति मार्ग और निवृत्ति मार्ग को कर्तव्य और अकर्तव्य को, भय और अभय को तथा बन्धन और मोक्ष को यथार्थ जानती है — वह बुद्भि सात्विकी है ।। ३० ।।

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