मोह

मोह

अध्याय – 2 – श्लोक – 60

The Blessed Lord said:

Even those who are wise and are striving to achieve spiritual happiness and freedom are carried away violently or with great force by their excited senses.

हे अर्जुन ! आसक्त्ति का नाश न होने के कारण ये प्रमथन स्वभाव वाली इन्द्रियाँ यत्त्न करते हुए बुद्भिमान् पुरुष के मन को भी बलात्कार से हर लेती हैं ।। ६० ।।

अध्याय – 2 – श्लोक – 61

The yogis or My divine devotees have gained or achieved self control; they have complete control of their senses and therefore they have also earned the power of constant wisdom. Their minds are constantly focussed and concentrated on ME, the Supreme Goal.

इसलिये साधक को चाहिये कि वह उन सम्पूर्ण इन्द्रियों को वश में करके समाहितचित्त हुआ मेरे परायण होकर ध्यान में बैठे ; क्योंकि जिस पुरुष की इन्द्रियाँ वश में होती हैं, उसी की बुद्भि स्थिर हो जाती है ।। ६१ ।।

अध्याय – 2 – श्लोक – 70

As the river enters the ocean without affecting the ocean or disturbing it, so the desires enter the person who has obtained Supreme peace, but not the person who is already filled with desires and wants more and more.

जैसे नाना नदियों के जल सब ओर से परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं, वैसे ही सब भोग जिस स्थित प्रज्ञ पुरुष में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किये बिना ही समा जाते हैं, वही पुरुष परम शान्ति को प्राप्त होता है, भोगों को चाहने वाला नहीं ।। ७० ।।

अध्याय – 7 – श्लोक – 14

Because My divine nature (many) consisting of these three parts, is very powerful,only those who continuously worship me, rise above these three Gunas (parts of nature) and cease to be deluded by them.
क्योंकि यह अलौकिक अर्थात् अति अद्बूत त्रिगुणमयी मेरी माया बड़ी दुस्तर है ; परन्तु जो पुरुष केवल मुझको ही निरन्तर भजते हैं, वे इस माया को उल्लंघन कर जाते हैं, अर्थात् संसार से तर जाते हैं ।। १४ ।।

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