One who cannot control his senses is one who is lacking in steady wisdom and intelligence, and also lacks proper feelings or sentiments (thoughts). A person who cannot think properly and make decisions with a clear mind, cannot have peace of mind, and without peace of mind there can be no happiness.
न जीते हुए मन और इन्द्रियों वाले पुरुष में निश्चयात्मिका बुद्भि नहीं होती और उस अयुक्त्त मनुष्य के अन्त:करण में भावना भी नहीं होती तथा भावनाहीन मनुष्यों को शान्ति नहीं मिलती और शान्ति रहित मनुष्य को सुख कैसे मिल सकता है ।। ६६ ।।
अध्याय – 2 – श्लोक -71
The Blessed Lord said:
By giving up all desires, freeing oneself of all attachments and without constantly thinking of oneself or of one’s possessions, only then, one may live in realistic peace.
जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्याग कर ममता रहित, अहंकार रहित और स्पृहारहित हुआ विचरता है, वही शान्ति को प्राप्त होता है अर्थात् वह शान्ति को प्राप्त है ।। ७१ ।।
अध्याय – 4 – श्लोक -39
To abtain Gyan, one must conquer the senses, and develop a real devotion and faith towards the Lord. When one obtains Gyan, he has discovered the key to Supreme peace.
जितेन्द्रिय साधन परायण और श्रद्धावान् मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है तथा ज्ञान को प्राप्त होकर वह बिना विलम्ब के — तत्काल ही भगवत्प्राप्ति रूप परम शान्ति को प्राप्त हो जाता है ।। ३९ ।।
अध्याय – 5 – श्लोक -29
The Lord declared:
O Arjuna, he who shall consider ME the enjoyer of sacrifices and all that is internally pure, and who is devoted to ME, the God of all worlds and well-wisher of all beings, attains true, everlasting peace.
मेरा भक्त्त मुझको सब यज्ञ और तपों का भोगने वाला, सम्पूर्ण लोकों के ईश्वरों का भी ईश्वर तथा सम्पूर्ण भूत प्राणियों का सुह्रद् अर्थात् स्वार्थ रहित दयालु और प्रेमी, ऐसा तत्त्व से जान कर शान्ति को प्राप्त होता है ।। २९ ।।
अध्याय – 8 – श्लोक -28
Whatever achievements are obtained by the study of the Vedas, by sacrifices, and by giving to charities, the Yogi goes beyond all of these achievements and achieves the ultimate goal and learns the ultimate secret: the attainment of the eternal Supreme state by constantly practising Yoga.
योगी पुरुष इस रहस्य को तत्त्व से जानकर वेदों के पढ़ने में तथा यज्ञ, तप और दानादि के करने में जो पुण्य फल कहा है, उस सबको नि:संदेह उल्लंघन कर जाता है और सनातन परम पद को प्राप्त होता है ।। २८ ।।