अध्याय ७ – श्लोक ४,५

अध्याय ७ – श्लोक ४,५

 

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TheGita – Chapter 7 – Shloka 4,5

Shloka 4,5

My nature,dear Arjuna, is formed by eight elements, namely, earth, fire, wind, water, sky, mind, intellect and ego.
O Arjuna, understand that the elements I have just mentioned to you are only part of My lower nature. The other part of Me is My higher nature, which preserves the universe.

पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्भि और अहंकार भी —- इस प्रकार यह आठ प्रकार से विभाजित मेरी प्रकृति है । यह आठ प्रकार के भेदों वाली तो अपरा अर्थात् मेरी जड़ प्रकृति है और हे महाबाहो ! इससे दूसरी को, जिससे यह सम्पूर्ण जगत् धारण किया जाता है, मेरी जीव रूपा परा अर्थात् चेतन प्रकृति जान ।। ४ – ५।।

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