The Lord explained:
O Arjuna, he who truly sees Me everywhere he looks, sees me in everything. I am always there within his sight and he is also always within my sight.
जो पुरुष सम्पूर्ण भूतों में सबके आत्मरूप मुझ वासुदेव को ही व्यापक देखता है और सम्पूर्ण भूतों को मुझ वासुदेव के अन्तर्गत* देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता ।। ३०
अध्याय – 9 – श्लोक – 29
I regard all beings with equality and with even-mindedness. I neither hate nor love anybody, nor do I like or dislike anyone. However, those who choose to worship Me, with everlasting and pure devotion, are always in Me, and I am in them.
मै सब भूतो मे सम भाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है; परन्तु जो भक्त्त मुझको प्रेम से भजते है, वे मुझ मे है और मै भी उनमे प्रत्यक्ष प्रकट हूँ ।। २९ ।।
अध्याय – 13 – श्लोक – 16
He is undivided and yet he appears to be divided in beings. He supports, swallows up and also creates all beings.
वह परमात्मा विभाग रहित एक रूप से आकाश के सद्र्श परिपूर्ण होने पर भी चराचर सम्पूर्ण भूतों में विभक्त्त सा स्थित प्रतीत होता है ; तथा वह जानने योग्य परमात्मा विष्णु रूप से भूतों को धारण-पोषण करने वाला और रुद्र रूप संहार करने वाला तथा ब्रह्मा रूप से सबको उत्पन्न करने वाला है ।। १६ ।।
अध्याय – 13 – श्लोक – 18
Thus the field, knowledge and the knowable have been briefly stated (by Me). My devotee, on knowing this, becomes one with Me.
इस प्रकार क्षेत्र तथा ज्ञान और जानने योग्य परमात्मा का स्वरूप संक्षेप से कहा गया । मेरा भक्त्त इसको तत्व से जानकर मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है ।। १८ ।।